इतिहास को लेकर आप लापरवाह नहीं हो सकते !

किताबीयत : वाईस ऑफ डिसेंट 

सहमतियां कभी बग़ावत में नहीं बदल सकीं। जिस व्यवस्था के सामने खड़ी हुई हैं, आगे चल कर उसी का हिस्सा हो जाती हैं। हर सभ्यता में असहमति की अपनी परंपरा रही है। एक सीधी रेखा में चलने वाली

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इतिहास सोया हुआ शेर हैं, इसे मत जगाओं

खनऊ के गन्ना संस्थान के हॉल में 2 जुलाई 1990 को ‘पयामे इन्सानियत’ अधिवेशन आयोजित किया गया था। उसमें इस फोरम के संस्थापक और धार्मिक विद्वान मौ. अबुल हसन अली नदवी (अली मियाँ) ने एक भाषण दिया था।

जिसे बाद में ‘पयामे इन्सानियत फोरम’ …

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