प्रधानमंत्री नेहरू भी खड़े होते थे बेगम अख्तर के सम्मान में !

वे सरापा ग़ज़​​ल थीं। उन जैसे ग़ज़लसरा न पहले कोई था और न आगे होगा। ग़ज़ल से उनकी शिनाख्त है। ग़ज़ल के बिना बेगम अख्तर अधूरी हैं और बेगम अख्तर बगैर ग़ज़ल! देश-दुनिया में ग़ज़ल को जो बेइंतिहा मकबूलियत मिली, उसमें

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