उर्दू ज़बान के ‘शायर-ए-आज़म’ थे फ़िराक़ गोरखपुरी!

क उम्दा मोती, खु़श लहजे के आसमान के चौहदवीं के चांद और इल्म की महफ़िल के सद्र। ज़हानत के क़ाफ़िले के सरदार। दुनिया के ताजदार। समझदार, पारखी निगाह, ज़मीं पर उतरे फ़रिश्ते, शायरे-बुजु़र्ग और आला। अपने फ़िराक़ को मैं

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शायर-ए-इंकलाब ‘जोश मलीहाबादी’ पाकिस्तान क्यों चले गए?

र्दू अदब में जोश मलीहाबादी वह आला नाम है, जो अपने इंकलाबी कलाम से शायर-ए-इंकलाब कहलाए। उनके तआरुफ और अज्मत को बतलाने के लिए उनके हजारों शेर काफी है। वरना उनके अदबी खजाने में ऐसे-ऐसे कीमती हीरे-मोती हैं, जिनकी चमक

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गुलाम रब्बानी ताबां जिन्होंने दंगों के विरोध में लौटाया ‘पद्मश्री’

र्दू अदब में ग़ुलाम रब्बानी ताबां का शुमार तरक्कीपसंद शायरों की फेहरिस्त में होता है। उन्होंने न सिर्फ़ शायरी की ज़मीन पर तरक्कीपसंद ख्याल और उसूलों को आम करने की कोशिश की, बल्कि इसके लिए हर मोर्चे पर ताउम्र जद्दोजहद करते रहे। तमाम

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