सांस्कृतिक भारत को जानना हैं तो नज़ीर बनारसी को पढ़ना होगा !

रहदों से दूर होती है कविता, एक देश का कवि या शायर दूसरे मुल्क में जा कर अपने कलामों, गज़लों और नज़मों से लोगों को बाग-बाग कर सकता है। खुश कर सकता है। आपस की दीवारों को गिराने का काम साहित्य या

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मर्दाने समाज में स्त्रीत्व की पहचान परवीन शाकिर!

रवीन शाकिर उर्दू शायरी का एक जाना माना नाम है। वर्जनाओं से भरे समाज में उन्होंने भावनाओं से भरी कलम को चुना और इसकी स्याही का रंग स्त्रीत्व के गुलाल से रंगा था। कमोबेश, अपनी हर रचना में उन्होंने स्त्री मन के कोमल

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भारत को अपना दूसरा घर मानते थे अहमद फराज़

धुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में गिने जाने वाले अहमद फ़राज़ का जन्म अविभाजित भारत के कोहाट में 12 जनवरी 1931 को हुआ था। इन के बचपन का नाम सैयद अहमद शाह था। इन के पिता जी का नाम सैयद मुहंमद शाह बर्क तथा

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…और बगावत बन गई साहिर के मिजाज का हिस्सा!

साल 2021, शायर-नग्मा निगार साहिर लुधियानवी का जन्मशती साल है। इस दुनिया से रुखसत हुए, उन्हें एक लंबा अरसा हो गया, मगर आज भी उनकी शायरी सिर चढ़कर बोलती है। उर्दू अदब में उनका कोई सानी नहीं। 8 मार्च, 1921

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एहसान दानिश की पहचान ‘शायर-ए-मजदूर’ कैसे बनी?

र्दू अदब में एहसान दानिश की पहचान, ‘शायर-ए-मजदूर के तौर पर है। मजदूरों के उन्वान से उन्होंने अनेक गजलें, नज्में लिखीं। वे एक अवामी शायर थे। किसानों, कामगारों के बीच जब दानिश अपना कलाम पढ़ते थे, तो एक

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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ आज भी हैं अवाम के महबूब शायर

र्दू अदब में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम एक आला दर्जे का मुकाम रखता है। वे न सिर्फ उर्दूभाषियों के पसंदीदा शायर हैं बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषी लोग भी उन्हें उतने ही शिद्दत से पढ़ते हैं। उनकी नज्मों-गजलों के मिसरे और जबान पर

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