किसके वायरस से फैला दिल्ली का दंगा?

राज्यसभा से :

होदय, सबसे पहले मैं 23 फऱवरी से 26 फरवरी के बीच हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं पर इस चर्चा को आरं करने का अवसर देने के लिए अपनी पार्टी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। महोदय, इस समय दो किस्म के वायरस ने तबाही मचाई हुई है। पहला​​ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना वायरस चल रहा है। हमें अभी उसकी बुनियाद मालूम नहीं हुई है।

अभी उसकी रिसर्च हो रही है, लेकिन इतना जरूर मालूम है कि वह वुहान से शुरू हुआ था और विश्व में फैल रहा है और एक वायरस यहां चल रहा है। यह ऐसा कम्युनल वायरस है, जिसे बहुत तेजी से बढ़ावा मिल रहा है। इतना तो हमें मालूम है कि इसकी जड़ क्या है और कहां से आती है? इस बात का हमें मालूम है।

गंभीर बात यह है कि जब यह वायरस फैल रहा था, तो इसका साथ कौन दे रहा था? इस आपराधिक वायरस के सहयोगी कौन थे जो फैलाया जा रहा था? और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा हैं जिस पर में आज चर्चा करना चाहूँगा।

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सीसीटीवी क्यों तोडे गए?

कॅमेरे गृह मंत्री जी यहां बैठे हुए हैं और इन्होंने फुटेज भी देखी होगी। एक ऐसी फुटेज है, जिसमें पुलिसकर्मी खुद सीसीटीवी कॅमेरे को तोड़ रहे हैं। अब क्यों तोड़ रहे हैं, यह तो सभी को मालूम है।

वे इसलिए तोड़ रहे हैं कि जो भी दंगा-फसाद कर रहे हैं, उनका सबुत सामने नहीं आए। निश्चित रूप से उनके बेनिफिट के लिए तोड़ रहे हैं और साथ में जो हिंसा हो रही थी, उसका साथ भी दे रहे हैं।

एक और हादसा आपने सोशल मीडिया में देखा होगा कि एक पुलिसकर्मी जख्मी इंसान के मुंह पर लाठी मार रहे हैं और उसको कह रहे है कि तू जन-गण-मन गा। उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई। यह सब भी हमने देखा।

आपको मालूम है कि 24 फरवरी को धारा 144 लागू हो गई और उसके लागू होने के बाद भी पुलिस ने कुछ नहीं किया। जब कोर्ट ने और माननीय न्यायाधीश ने पुलिस से भड़काऊ भाषण के बारे में पूछा कि क्या आपको मालूम है कि ऐसे-ऐसे भाषण हो रहे थे और ऐसी फोटोस दिखाई जा रही थीं, तो पुलिस ने कहा कि हमें कुछ मालूम नहीं है।

हमने तो देखे ही नहीं। असलियत यह थी कि फिर न्यायाधीश ने कहा कि मैं आपको दिखाता हूं। सारी दुनिया को मालूम था कि दिल्ली में क्या हो रहा है और पुलिसकर्मियों को मालूम नहीं था, कमिश्नर ऑफ पुलिस को मालूम नहीं था! पता नहीं, गृह मंत्री जी को मालूम था या नहीं, ये हमें बताएंगे।

जब लोग ज़ख्मी हो रहे थे तो एक अल-हिंद नामक प्राइवेट अस्पताल है, वे लोग वहां जा रहे थे, लेकिन क्योंकि वह सरकारी अस्पताल नहीं है तो एमएलसी वहां से जारी नहीं हो सकता था और पुलिस कुछ नहीं कर रही थी। जो ज़ख्मी लोग थे, उन्हें एक गवर्नमेंट अस्पताल में ले जाना था, लेकिन पुलिस कुछ कर नहीं रही थी तो दो बजे रात को एक न्यायाधीश ने सिटिंग की कि आप इतना तो कर दीजिए।

उसके बाद कहीं उन्हें वहां से जाने दिया, सहूलियत मिली और वे एक गवर्नमेंट अस्पताल में गए। अब इस बात का तो हमें पता है कि दिल्ली में लगभग 87 हजार पुलिसकर्मी है। इतने पुलिसकर्मियों के होते हुए भी दंगे रुक नहीं पाए।

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दर्दनाक कहानियां

मुझे तो ताज्जुब है कि 25 फरवरी शाम को पांच बजे एक Press Information Burro की (प्रेस) रिलीज़ हुई थी जिसमें कहा गया कि प्रोफेशनली हमें यह जानकारी मिली है कि यह जो हादसा हुआ है, वह स्वाभाविक (spontaneous) है।

यह पीआईबी की रिलीज़ है, मैं सदन में उसे पढ़ भी सकता हूं। कल (11 मार्च 2020) गृह मंत्री जी ने लोक सभा में कहा कि यह तो षडयंत्र थी, यह तो साजिश (conspiracy) थी। तो 25 फरवरी को स्वाभाविक था और कल लोक सभा में वह साजिश हो गयी; यह बदलाव कसे आया?

अब कहा जा रहा है कि लोग उत्तर प्रदेश से आए। इतना तो साफ जाहिर है कि पुलिस, जो हिंसा करवा रहे थे, कर रहे थे, उनका साथ दे रही थी। उसका नतीजा क्या हुआ, कैसे-कैसे बेकसूर लोग मारे गए, जिनका दंगे-फसाद से कोई लेना देना नहीं था! एक 85 साल के बूढ़े आदमी को तीसरे माले पर जाकर जला दिया गया। 85 साल का बूढ़ा – उसका दंगों से क्या लेना-देना था?

एक 22 साल का लड़का सुबह दो लोगों के साथ जा रहा था। यह 26 फरवरी की बात है, जिसके बारे में गृह मंत्री जी ने कहा कि 26 फरवरी को कुछ नहीं हुआ, तो मैं उस दिन का ही वाक़या बता रहा हूं – वह दो और लोगों के साथ मोटसाईकल पर करावल नगर में जा रहा था, उसे रोक लिया गया और पूछा कि तुम कौन हो, तुम्हारा धर्म क्या है? वह चुप रहा तो उसके कपड़े उतारे गए और उसे मार दिया गया। यह दिल्ली में हो रहा था!

नेशनल सिक्युरिटी एडवायजर, डोभाल साहब ने गुरुग्राम में पुलिस अधीक्षकों की बैठक में कहा कि कानून पार्लियामेंट बनाती है, यह उनका कर्तव्य है और उन कानूनों को लागू करना पुलिस का कर्तव्य है। अगर पुलिस उन कानूनों को लागू नहीं करती, तो वह लोकतंत्र पर एक धब्बा है – यह नेशनल सिक्युरिटी एडवायजर ने कहा। शायद गृह मंत्री जी के बारे में वे (वहां) कुछ कह रहे थे – हो सकता है, मुझे नहीं मालूम।

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एक मुहंमद अख्तर नाम के व्यक्ति का सारा घर जला दिया गया। एक सबसे दर्दनाक कहानी एक बूढ़े की हैजो चारपाई पर बैठा हुआ थादंगाई वहां आए और उन्होंने उसे मारा। वह उठा तो फिर उसको मारातीसरी बार यह उठा तो फिर से उसे मारा। उसके बाद उसे बाहर निकाल दिया गया और जला दिया गया। जलने के बाद उसकी केवल एक टांग बची थी।

उसकी बेटी गुलशन का जो खाविंद थाउस बेचारे की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह उसे पहचान भी नहीं पाया। वह सुनता रहा कि क्या हो रहा है। जब लोग अस्पताल में गए और पुलिस ने कहा कि आप बताइए कि यह किसकी लाश हैडॉक्टर्स ने उससे पूछा कि आप कैसे कह सकते हैं कि यह आपका ससुर हैवह बोला कि इस लेग में उसका एक घाव थातो दामाद ने घाव पर हाथ रखकर कहा कि हांये मेरे ही रिश्तेदार हैं।

गृह मंत्री जी, यह दिल्ली में हो रहा था। आप क्या कर रहे थे? जो लोग पीड़ित हैं, वे आज कह रहे हैं कि

मैं किसका सहारा लूं, कानून तो हथियार बन गया है।

अब तो शहर में बेकसूर भी गुनहगार बन गया है।

चल रहा था बेफिक्र होकर घर की सड़क पर मैं,

उसी सड़क पर हिंसा एक त्यौहार बन गया है।

अब तो शहर में बेकसूर भी गुनहगार बन गया है।

चल रहा था बेफिक्र होकर घर की सड़क पर मैं,

उसी सड़क पर हिंसा एक त्यौहार बन गया है। 

ये है असलियत दिल्ली की, जहां कभी दंगे नहीं होते थे। गृह मंत्री जी ताज्जुब की बात यह है कि नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली की टोटल आबादी लगभग 22 लाख है। मैं 2011 के जनसंख्या की बात कर रहा हूं, उसमें 68 परसेंट हिन्दू है और 29 प्रतिशत मुस्लिम है। लगभग 53 लोगों की मौत हुई है, उसमें से 44 के तो मेरे पास आंकड़े हैं।

उनमें से 32 लोग एक समुदाय से संबंध रखते हैं और 12 लोग दूसरी कम्युनिटी से संबंधित थे। यह हिंसा का नाच क्यों हो रहा था? यह (कम्युनल) वायरस की वजह से हो रहा था। किसी और वजह से नहीं हो रहा था। यह वायरस किसने फैलाया? यह वायरस उन्हीं लोगों ने फैलाया, जो भड़काऊ भाषण दे रहे थे। 

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